रोजगार और मंद पड़ता निर्माण रोजगार विकास `अर्थव्यवस्था के लिए बुरी खबर है'। इन शोधकर्ताओं के अनुसार, "आय विकास को बनाये रखने, जीवन स्तर को बेहतर करने और गरीबी को कम करने के लिए जरूरी है कि मैन्यूफैक्चरिंग व निर्माण (बावजूद अस्थाई सेक्टर होने के) में रोजगार अवसरों को बढ़ाया जाये।' मेहरोत्रा जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के फ्रोफेसर हैं, जबकि परिदा सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ पंजाब से संबंधित हैं। लेकिन उनका अध्ययन लवीश भंडारी व अमरेश दुबे के हाल के अध्ययन के पूर्णतः विपरीत है। भंडारी व दुबे के अध्ययन को फ्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ने कमीशन किया था और इसमें दावा किया गया था कि 2011-12 व 2017-18 के बीच कुल रोजगार 433 मिलियन से बढ़कर 457 मिलियन हुआ। मेहरोत्रा व परिदा का दावा है कि रोजगार 2011-12 में 474 मिलियन से गिरकर 2017-18 में 465 मिलियन हुआ यानी 9 मिलियन की कमी आयी, जो भारत के इतिहास में पहली बार हुआ है। हिमांशु ने हालांकि इस विषय पर अभी औपचारिक पेपर नहीं लिखा है, लेकिन एक अगस्त को मिंट में फ्रकाशित उन्होंने अपने लेख में कहा कि 2011-12 व 2017-18 के बीच यानी छह वर्ष की अवधि में कुल रोजगार में 15 मिलियन से अधिक की कमी आयी यानी वह 472.5 मिलियन से गिरकर 457 मिलियन हुई। दूसरे शब्दों में 2011-12 व 2017-18 के बीच रोजगार में हर साल करीब 2.6 मिलियन जॉब्स की कमी हुई। 2011-12 के लिए भंडारी व दुबे (433 मिलियन) ने जो आंकड़ा दिया है और जो मेहरोत्रा व परिदा (474 मिलियन) और हिमांशु (472.5 मिलियन) ने दिया है, उसमें लगभग 40 मिलियन का अंतर है। यह अंतर आश्चर्यजनक है क्योंकि इन सभी अध्ययनों के लिए डाटा का स्रोत समान है- नेशनल सैंपल सर्वे आर्गेनाइजेशन के 2004-05 व 2011-12 रोजगार-बेरोजगार सर्वे और 2017-18 का आवधिक श्रम बल सर्वे। दूसरे शब्दों में रोजगार व बेरोजगार का अनुपात जो इन अर्थशास्त्रियों ने फ्रयोग किया है वह समान है, लेकिन नंबर्स में अंतर है। हालांकि अर्थशास्त्रियों ने अभी एक दूसरे के पेपर नहीं पढें हैं, लेकिन उनके आंकड़ों में अंतर के दो संभावित कारण हैं। एक यह कि कुल रोजगार संख्या तक पहुंचने के लिए देश की कुल जनसंख्या कितनी अनुमानित की गई। जनसंख्या का जितना अधिक अनुमान लगाया जायेगा, उतना ही अधिक रोजगार अनुमान आयेगा। भंडारी व दुबे ने 2017-18 के लिए भारत की जनसंख्या 1.36 बिलियन मानी। मेहरोत्रा व परिदा ने जनसंख्या 1.35 बिलियन मानी और कहा कि उन्होंने अनावश्यक आलोचना से बचने के लिए ऐसा किया। विश्व बैंक 2017-18 में भारत की जनसंख्या 1.33 बिलियन मानती है। बहरहाल, हिमांशु ने सरकार के अधिकारिक जीडीपी डाटा में दी गई जनसंख्या का फ्रयोग किया है, जो 1.31 बिलियन पर काफी कम है। भारत की जनसंख्या अनुमान को लेकर यह विरोधाभास इसलिए है कि सरकार ने अभी तक 2011 की जनगणना आंकड़े जारी नहीं किये हैं, जो पिछली परम्परा को मद्देनजर रखते हुए 2016 में जारी कर दिए जाने थे। भंडारी व दुबे के अनुमान व अन्यों के अनुमान में अंतर का दूसरा कारण यह है कि भंडारी व दुबे ने रोजगार का सिर्फ `फ्रिंसिपल स्टेटस' फ्रयोग किया है और `सब्सिडियरी स्टेटस' को छोड़ दिया है। फ्रिंसिपल स्टेटस में यह देखा जाता है कि सर्वे से पहले के 365 दिनों के दौरान व्यक्ति 182 दिनों से अधिक रोजगार में था या नहीं और `सब्सिडियरी स्टेटस' में यह देखा जाता है कि व्यक्ति पिछले साल में कम से कम 30 दिन के लिए रोजगार में था या नहीं। केवल फ्रिंसिपल स्टेटस के फ्रयोग करने का अर्थ है कि दोनों रोजगार व बेरोजगारी का अपर्याप्त अनुमान निकलेगा। चूंकि भारत में अधिकतर रोजगार मौसमी होता है, जैसे ईंट पाथना मानसून में नहीं होता, महिलाएं कम अवधि के लिए खेतों पर काम करती हैं आदि, इसलिए दोनों फ्रिंसिपल स्टेटस व `सब्सिडियरी स्टेटस' को लेने का चलन है।
http://www.virarjun.com/category/sunday/--1114100
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